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दीपावली-- दीप ( शरीर ) जले निर्वाण के लिये | अमर दीप (आत्मा ) जला , अमर संदेश और प्रकाश के लिये | बुझना मुक्त होना कब हुआ ? लय हो रहा है अमर में | प्रकाश स्वयं फ़ैल रहा है | यह अमर ज्योति है | भाव - 152
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नदी बह रही थी । गति शांत , प्राण क्लांत । आई वर्षा , लाई बाढ़ ।लाभ हानि से परे थी नदी | आज गति में ही गति थी | प्रियतम का मिलन | - भक्ति - 2
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प्रिय की गोद में जो प्राण गंवाये | फिर नहीं आये ,वह फिर नहीं आये | - भाव - 4
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ज्योति - आँख में हो या हृदय में , प्राण में हो या प्रणय में , ज्योति ही है - जिसके अभाव में सब नीरस | - भक्ति - 13
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भाव और प्राण इतने मधुर क्यों ? प्राण स्थिति भाव गति | - भक्ति - 14
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ध्यान से देखा , ध्यान में देखा | प्राण देकर देखा , प्राणों में देखा , फिर ध्यान , समर्पण ? - भाव - 15
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किसका आश्वासन ? जिसकी आश न हो , श्वास का पता न हो | आश्वासन उसी का जो आसन लगा कर स्थित है - प्राण जिसमें स्थित है | - चेतावनी - 16
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ज्ञान की पहिचान ? जब ध्यान न रहे , भान न रहे , मान न रहे , कान न रहे , शान न रहे | प्राण ? रहे प्राण , केवल प्राण जिनमें तुम समाये | - भाव - 32
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प्राण में गति है या गति में प्राण | न बन अनजान | दो दिन का मेहमान | शायद इसीलिये शान और अभिमान | - ज्ञान की चेतावनी - 33
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आज के गीत प्राणों को शांति दें | प्रार्थना नहीं , प्राण चाहते हैं | - भाव - 41
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प्राण - प्राणधन में समाये | अब धन और ऋण से उऋण | क्यों ? उ - ऊँ का ऋण चुका , ऊँ हो रहा | - भाव - 54
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कोने कोने में कौन ? एक प्राण दो देह - देह देह नहीं ले | - भाव - 60
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तेरी याद आँसुओं से | तेरी बात प्राणों से | तेरा काम मन से किया तो क्या किया ? आँसू सूख गये , प्राण उड़ गये | मन रम गया - अब ? - भाव - 74
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फूल तेरा मुख , सुगन्ध तेरे प्राण | मुरझाना , जरा का भाव । मिल जाना तो मिल जाना है | - भक्ति - 88
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वायु भी शिक्षा देती यदि वह प्राण देता और आनन्द लेता | - चेतावनी - 94
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श्वास है , विश्वास नहीं ? प्राण है , प्राण पति नहीं ? - चेतावनी - 105
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प्रण ही प्राण | प्राण ही प्रणव | - चेतना - 128
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श्रम विश्राम चाहता है | अनुराग प्राण चाहता है , जहाँ श्रम नहीं , गति में विश्राम है | - चेतना - 129
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इस प्राणमय लोक में भी मृत्यु ? है , जिनके प्राण प्राणपति के लिये व्याकुल न हों | - भक्ति की चेतावनी - 136
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गुलाब ने कहा गुलाल ले | अबीर ने कहा - अब देर न कर | प्राण गुलाल , दिल अबीर | - भक्ति की चेतावनी - 149
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प्राण स्पर्शी ध्वनि धुन में समाई , क्रिया भीतर बाहर | यही लाभ | - भक्ति की चेतावनी - 160
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प्राणी का प्राण प्यार | - भक्ति - 168
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बध स्वीकार , बद्ध न कर | बार बार मिलन के लिये बेचैन होंगे ये प्राण | - भाव - 169
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कर्म में कौन रमा है ? कर्त्ता का प्राण | - भक्ति - 172
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आकाश की तरह भावों को आच्छादित कर | वायुवत् प्राणों को स्पर्श कर नव प्राण दे | अग्नि का ओज तेरी वाणी करे | जलवत् बह निकले प्रेम करुणा | पृथ्वी धन्य हो तेरी लीला देख | - चेतावनी - 179
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मेरे छटपटाते हुए पँखो को देख , मेरी गर्दन को देख , दम घुट रहा है , प्राण छूट रहे हैं | क्या अब भी दर्शन न देगा ? तो क्या तेरी याद , मेरी फरियाद वृथा होगी ? - भाव - 180
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वाणी - सौरभमय वाणी , प्राणों की वाणी , सदा प्राण दायिनी , काल का काल , आनन्द में बेहाल , करती आ रही है | - भक्ति - 203
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स्वर में - ' स्व ' है , वर है , सर है , रस है | स्वर के अभाव में सभी व्यंजन नीरस , व्यर्थ | स्वर , ईश्वर जिससे सभी व्यंजनों को प्राण मिले , ध्वनित हुए , मुखरित हुए | वाह रे स्वर | - ज्ञान - 204
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मिला मिट्टी में शरीर | प्राण वायु में | प्राण रहते - बसने वाले से न मिला | यात्रा यों ही रही | - चेतावनी - 224
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गाथा है | गा भविष्य , था भूत | भूत भविष्य की बातें | और वर्तमान ? मान उसी को मान , जो तेरा प्राण है | - ज्ञान की चेतावनी - 235
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ना मैं - नाम | मैं ना - नाम | नाम - मम प्राण |
- भक्ति की चेतावनी - 247
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हो जाता | ऐसा न कहो हो जाता | कहो हो रहता , दिल हो कर , प्राण हो कर | - भक्ति - 249
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धन दिखलाकर मन चंचल करता है , क्यों ? क्या तू प्राण धन नहीं ? रूप दिखला कर भ्रमित करता है बुद्धि को , क्या तू रूप का आगार नहीं ? फिर यह खेल क्यों ? स्थूल में लिपटा कर सूक्ष्म में बेचैन क्यों बना रखा है? - भाव - 250
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प्राण शक्ति अद्भुत | प्रभाव अभाव भी अद्भुत ? संयोग प्राण वियोग भी प्राण की महाशक्ति | - ज्ञान - 264
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ये बाजे मुझे बुला न सकेंगे | ये प्राण मुझे भुला न सकेंगे | मैं भगवान , जग सावधान | - ज्ञान - 267
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ये प्राणी तेरे प्राण , स्वयं भगवान | फिर दान क्या ? प्रति दान क्या ? ज्ञान क्या ? भान क्या ? इन्सान क्या ? - भाव - 273
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माता के दूध ने ममता दी माँ को सन्तान को | तुम क्यों चुप बैठे रहे ? मैंने तो प्राण दिये हैं तुम मानों या न मानों | - भाव - 294
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जान जाये | प्राण पाये | प्रिय लुभाये | कह न पाये | - भक्ति - 303
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जान जाने | ( प्राण ) जान जाये | - भक्ति - 304
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हवा में तैरता हुआ प्राणी एक दिन हवा में ही विलीन हो जाता है | हवा प्राण हवा मृत्यु | वाह री हवा तैने सबको हवा में उड़ा दिया | - ज्ञान - 312
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यह शरीर दीपक , रक्त स्नेह (तेल) आयु वर्तिका , वायु प्राण प्रज्वलनकर्त्तृ |
- ज्ञान - 315
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प्राण दिये , गति दी | गति से दुर्गति बनाई | यह लाभ उठाया |
- भक्ति - 334
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देने वाला भगवान , हाँ भाई देनेवाला भगवान | जिसने प्राण दिये , ज्ञान दिया , ध्यान दिया . - भाव - 352
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ज्ञान बुद्धि वर्धक | भक्ति प्राण प्रवर्तक |
- भाव - 355
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भाव मेरा प्राण प्रिय , मेरा देवता , मेरा सर्वस्व | यदि यह न रहे तो मैं मुर्दा , जिसे न जलाने की जरुरत , न दफनाने की , न लटकाने की और न जल में प्रवाहित करने की | - ज्ञान - 358
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चूक और अचूक | चूक - भूल चूक | अचूक अव्यर्थ | चूका - गया अवसर | " समय चूक की हूक " बुरी | चूक मत | अचूक वाण वाणी का चला कि तेरा प्रिय व्याकुल होकर प्रत्यक्ष हो | वाण से मरेगा नहीं , वह अमर है | प्यार अमर , प्रिय अमर | प्राण चाहे रहे चाहे जाये |
- ज्ञान - 365
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पति की भक्ति क्यों ? पति पत रखेगा और भक्ति आनन्द बढ़ायेगी | किन्तु पति तो प्राण पति , जिसके अभाव में क्षण भर भी नहीं गति |
- भक्ति - 383
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धान का ध्यान | प्राण का ध्यान | मान का ध्यान है किन्तु ध्यान का ध्यान नहीं | - चेतावनी - 392
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लोग क्यों कहते हैं कि " न कोई संग आया है , न कोई संग जाता है |" आया भी है संग में और जाता भी है संग में किन्तु मनुष्य पहिचानता नहीं - आये हैं प्राण और प्राणेश्वर | न जाना और न पहिचाना केवल करता रहा बहाना कि न संग आया , न संग गया | - ज्ञान - 393
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उसी का ध्यान है | उसी का प्राण है | और ? निराभिमानी है | क्यों परेशान है ?
- भक्ति - 395
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गुण निधान प्रभु , अवगुण से भरी भावना मनुष्य की | निधान परेशान | क्यों ? प्राण देकर भी पश्चाताप ही बना रहा प्रभु को | क्यों ? प्राणों का सदुपयोग न किया प्राणी ने | - ज्ञान - 400
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आन के लिए प्राण | - चेतना - 409
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जान (ज्ञान ) के लिए प्राण |
- चेतना - 410
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गुरु के लिए प्राण |
- चेतना - 411
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रूह के लिए प्राण |
- चेतना - 412
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शरीरांत के समय कौन याद आया ? जिसमें प्राण अटक कर कह रहे थे - प्रत्यक्ष हो अब तो प्राण जा रहे हैं |
- भक्ति - 427
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आज तेरा जलवा दिखा | जल रहे हैं प्राण - जल है आँखों में | यह तेरा अर्घ्य है ? तू ऊर्ध्व है या अध है , यह अधम क्या धर्म धुरंधर भी नहीं जानते | - भाव - 438
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प्राचीन नवीन क्या है ? प्राचीन प्राण , वीन कार्य - पद्धति |
- ज्ञान की चेतावनी - 452
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मान के लिये प्राण व्याकुल | अमृत पान करेगा या खायेगा प्राण ? - चेतावनी - 452
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प्राणों के अज्ञात वासी को क्या दूँ प्राण दूँ या वास दूँ या पहचान लूँ ?
- भक्ति - 465
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मेरा मुख देख , मैं सुख का भूखा नहीं , आनन्द मेरा प्राण है | प्राण प्रिय कि छवि मुख पर , हृदय पर |
- भाव - 477
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बालू - बा - लू कहीं लगी तो प्राण घातक ( विषय , वासना कि तीब्रता ) बालू लगी तो कभी गर्म कभी ठंडी |
- चेतावनी - 479
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पाता-पाता कहता प्राणी थक चला | हे जगत्राता इसे शान्ति दे | पा कर भी यह सन्तुष्ट नहीं होता |
- भाव - 483
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धन क्यों लूँ मुझे तो प्राण धन मिला | क्या और भी धन हैं ? - भक्ति - 486
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पवन , पावन , मन भावन , जब प्रसार हो प्रणय का | यों तो प्राण घबडा उठे गन्दी वायु से | - चेतावनी - 506
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प्राण पखेरू उड़ जाते हैं तो तू भी क्या अदृश्य हो जायेगा ? नहीं , किसी को पकड़ता नहीं , पकड़ता हूँ किसी को किसी की दया के बल पर तो छोड़ता नहीं | पकड़ने वाला , छोड़ बैठे , यह उसकी इच्छा |
- भाव - 514
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तू एक हम अनेक , कैसे सकेगा ? मैं शून्य , मैं प्राण , मैं प्रकाश , शीतलता का आवास - नहीं विनाश | सहन शक्ति | - ज्ञान की चेतावनी - 520
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मन मान - यह गान
तज भान - यह ज्ञान
रज जान - यह जान
भज कान - यह प्राण
- चेतना - 522
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मोह की बाँसुरी सुनोगे या प्राण की ? - भक्ति - 534
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बन्द दरवाजे के भीतर यह किसकी तस्वीर है ? यह प्राण प्रिय की , किन्तु तुम कैसे देख पाये ? यह मेरा भी प्रिय है | प्रिय के लिये क्या कभी दरवाजा बन्द हुआ ?
- भाव - 540
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प्राणों में नव प्राण जागृत जब वाणी प्रवाहित हुई |
- भक्ति की चेतावनी - 581
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स्नेह जलता रहा , प्राण बेचैन थे | कौन धीरज बँधाये , जब कोई माया के गीत गाता था तो कोई माया की निन्दा करता था |
- चेतना - 622
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विभूति भी एक भूत है , जो प्राणों को शान्ति नहीं लेने देता , जब तक सदा के लिए शान्त नहीं हो जाते प्राणी और प्राण | - चेतावनी - 629
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क्रन्दन न सुन , विनोद न सुन | सुन तेरा प्राण किसे पुकार रहा है ?
- भक्ति की चेतावनी - 632
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उत्सव मना | शव में प्राण आ रहे है |
- भक्ति की चेतावनी - 636
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प्राण वायु में बसे हैं या तुम में , तुम्हीं जानो | - भक्ति - 638
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तुझे दूर समझा शांति न मिली , समीप समझा बेचैनी न मिटी | मिट्टी में मिलने लगा शरीर , फिर भी शांति नहीं | शांति प्राणों में थी | प्राण वस्तु , सम्बन्ध के लिये व्याकुल फिर शांति कहाँ ? - ज्ञान की चेतावनी - 647
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एक प्राण है फिर भाषा ने भेद की सृष्टि क्यों की ? भेद मिटाने के लिये वेद रचे , फिर भी भेद बना ही रहा | - चेतना - 656
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क्या बार-बार समर्पण की बातें करता है ? प्राण कर कि सम ही में समाऊँ | न आऊँ न जाऊँ |
- भक्ति की चेतावनी - 657
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व्यथा से थका प्राणी घबड़ा उठा | प्राण प्रिय ने कहा - मान या न मान | तू मेरा मेहमान है | - भक्ति - 663
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लाख समझाया कि वस्तु में न खोज प्राणों में खोज किन्तु कभी माना ? न मान रोयेंगे प्राण |
- चेतावनी - 672
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मन में न दुःख था न सुख | भावों ने उत्तेजित किया मन को अब तन बेहाल | तेरा भाव ? प्राणों का , प्राण पखेरू उड़ गये भाव फिर भी बना रहा प्यार का |
- ज्ञान की चेतावनी - 675
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मिट्टी ने रूप धारण किया , सुप्त प्राण जागृत | हलचल में उद्देश्य ही भूल बैठा | - चेतावनी - 676
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प्राण देकर प्रेम की रक्षा कर प्राण प्रिय के बल पर |
- भक्ति की चेतावनी - 699
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लोग कहते हैं कि तू निकम्मा है | क्यों ? धन के लिये काम नहीं करता | धन के लिये प्राणधन को भुला दूँ तो प्राण व्याकुल हो उठेंगे | रहने दे तेरा धन |
- चेतना - 708
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धन की कहानी में हानि है या लाभ यह तुम्हीं जानों | तुम धन्य हो जिसने प्राण धन पाया |
- भक्ति की चेतावनी - 730
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प्रण प्राण बना , प्राणी बना | प्रण भूला , प्राण व्याकुल | माया काया के गीत निरर्थक |
- चेतावनी - 738
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पानी में प्राण देखा | पत्थर में आग | मनुष्य में भगवान | किन्तु तुझ में प्राण है , अग्नि है , भगवान है फिर भी पत्थर बना बैठा है |
- भक्ति की चेतावनी - 743
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निर्मम ! चरण की रज भी नहीं दे सकता ? इस पर अधिकार प्राण प्रिय भक्तों का है | धन ले , जन ले | रज बड़ी महंगी | - भक्ति - 746
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प्राणान्त के पूर्व यदि कान्त का दर्शन सम्भव तो प्राण प्रणाम कर , नाम को प्राण में रख , उड़ जायेंगे पखेरू की तरह |
- भक्ति की चेतावनी - 753
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पान - तू मेरा प्राण सा हो गया | तेरे बिना बेचैन | प्राण कहते है कहाँ पान ? पान बिना घबड़ाये जान | वाह रे पान | पान कहता है - कर पान अमृत पान , वचन पान | रहे जब तक प्राण कर पान , मेरी बात मान | - चेतना - 767
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पान खा कर भूल गया मान अभिमान | पान , छोड़ मेरे प्राण | कहाँ रही शान बान | वाह रे पान , वाह रे प्राण |
- चेतना - 770
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प्रणय प्रण में अन्तर है ? प्रण ने प्रणय को प्राणों में बसाया | प्रण सफल , प्रणय कब विफल और प्राण तो विकल ही रहते यदि प्रण न होता प्रणय न होता |
- भक्ति की चेतावनी - 774
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तू कैसा प्राणी है जिसके प्राण कभी अभाव में कम्पित होते तो कभी भाव में विभोर होते ? खेल देखना तुझे पसन्द नहीं |
- भक्ति की चेतावनी - 777
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फुरसत - प्राण पखेरू फुर से उड़ गये अब सत में मिले तो फुरसत मिले |
- भक्ति की चेतावनी - 782
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माया और मायापति ने पागल बना रखा है | स्त्री पुरुष के झगड़े ने बेहाल बना रखा है | माया कहती है मैं महान , पति कहता है मैं तेरा प्राण | प्राण ही व्याकुल रहेंगे तो माया किस काम आई | - चेतावनी - 788
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खुद्कुसी क्यों ? खुद खुशी मना , तू मनुष्य है | आशा तेरे प्राण , निराशा प्राण घातक | - चेतावनी - 793
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कुछ आये ऐसे प्राणी - जिनके लिये प्राण तरसते थे मिलन के लिए | कुछ देखे ऐसे प्राणी - जिनसे प्राण घबड़ाते थे | मिलन का प्रश्न कहाँ ? यह है प्राणी जगत |
- चेतना - 795
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जानकार जानवर क्यों ? जान , वर को प्राण शांत हों |
- भक्ति की चेतावनी - 804
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मोह ने कर्तव्यच्युत किया , वासना ने दास बनाया इन्द्रियों का | अब त्राण कहाँ , अब प्राण कहाँ ?
- चेतावनी - 812
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प्राण में रण है जीवन का , व्रण है पूर्व संचित कर्मो का , भ्रम है जीव , शिव का , क्रम है जन्म-मरण का |
- चेतावनी - 817
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अनजान देश , अनजान प्रवेश , अनजान स्थान , अनजान प्रस्थान | जान है , प्राण है , ज्ञान है , विज्ञान है , निरभिमान है , अब देश विदेश का भय कैसा ? वह विराट है , सम्राटों का सम्राट है , अभय होकर भ्रमण कर , आनन्द ही आनन्द है |
- ज्ञान की चेतावनी - 825
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बुद्धि प्रिय है , मान्य है तो मन नहीं | प्राणों की व्याकुलता कब शान्त हुई ? जब प्राण प्रिय मिला | प्राण प्रिय कौन था-जिसे मन ने चाहा , दिल खो कर | - भक्ति - 831
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दुनिया - दो नीति का खेल है | कुछ नीति को धर्म समझ बैठे और कुछ नीति को अधर्म | फिर क्या था ? बुद्धिमानो की बन आई | प्राण छटपटाते रहे |
- चेतना - 839
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वाणी की सनद ? स्वयं वाणी | यदि प्राण है इनमें तो गूँज उठेगी | नहीं तो निष्प्राण की कीमत कहाँ ?
- चेतना - 857
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प्राण ही नहीं तो प्राण वायु क्या करेगी ? प्रेम ही नहीं तो यह अभ्यास क्या करेगा ?
- भक्ति की चेतावनी - 857
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अवशेष नहीं , अब शेष कर , प्रवेश अन्य शरीर में प्राण छटपटाते ही रहेंगे |
- ज्ञान की चेतावनी - 861
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मही में महान , तेरी शान | गुण की खान , गीता की तान , दिल में ठान , सबसे बड़ा प्राण दान | - भक्ति - 875
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मोह है , मोहक भी है | प्राण है , प्राणी भी है , भाषा है वाणी भी है , संसार है सांसारिक भी है , किन्तु प्रेम नहीं तो कुछ भी नहीं |
- ज्ञान की चेतावनी - 878
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अन्त है शरीर का | प्राण और परमात्मा तो अनन्त है | अभी नत न हुआ अनन्त की ओर इसी लिये अन्त से भयभीत है प्राणी |
- ज्ञान की चेतावनी - 893
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पृथ्वी थर्रा उठी , जब अहंकारी आया | पृथ्वी नाच उठी जब प्राण बल्लभ आया | - चेतना - 904
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कैसा प्रण था जिसे भूल बैठा , अब याद करता है ? प्रण भूलूँ तो प्राण छटपटाये | प्रण प्राण से बढ़ कर है | - भक्ति - 921
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खोजता है प्रिय को पत्थर की मूर्त्ति में | अरे वह पत्थर नहीं , मूर्त्ति नहीं - वह तो तेरा प्राण है |
- भक्ति की चेतावनी - 929
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किसी की सुनता नहीं ? किसी की क्यों सुनूँ ? प्यारा कहे तो प्राण न्योछावर करूँ प्यार के बल पर |
- चेतना - 956
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गुरु को क्यों मानता हूँ ? यह गुरु से पूछो | तू बातें बनाने वाला क्या देगा ? और लेने लगा तू क्यों | दिल देकर दिल बदला , प्राण संचार कर प्राणों में प्रिय को बसाया | उपकार कहूँ या प्यार ? गुरु ही जाने |
- चेतना - 962
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वायु ने प्राण दिये और लिये तुम क्या दोगे ? - भक्ति - 967
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ईसू ने रक्त दिया , ईश्वर ने प्राण | प्राणों में प्राणियों के लिए , प्रेम का भाव न आया तो किया कराया व्यर्थ ही हुआ |
- ज्ञान की चेतावनी - 988
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प्रदर्शन ने वाणी को मौन कर दिया | बोले तो अपमानित , न बोले तो प्राण बेचैन | वाणी किसकी कहे , किसकी सुने ?
- चेतना - 997
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काम में भी लगन , राम में भी लगन | लगन नहीं तो मगन कैसे होगा प्राणी | प्राण बेचैनी का नाम नहीं , बेचैनी तो कार्य की पूर्ति के लिये है यदि लगन का अभाव है | - ज्ञान की चेतावनी - 1021
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देखे नजारे ( तुम्हारे ) कहा दिल में न जा रे , तड़पेंगे प्राण बेचारे | सँभाले न सँभलेंगे भाव हमारे | हाथ मलता है | मिलाता क्यों नहीं ? ( हाथ ) - भक्ति - 1063
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पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा की वह भी देव प्रतिमा कहलाई फिर शरीर का ऐसा हाल क्यों ? पत्थर कुछ चाहता नहीं | शरीर , चाहता है शरीर इसीलिए गंदा |
- चेतना - 1077
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प्रेम इतना आकर्षक क्यों ? प्रेम प्राण है सृष्टि का , सृष्टिकर्त्ता का |
- भक्ति की चेतावनी - 1078
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फूल तो गजब के खिले , सुगंध कहाँ ? मनुष्य तो अजब देखे प्राण कहाँ ? ये दिखावटी है , ये बनावटी है |
- चेतना - 1081
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भाषा हमारा प्राण है , तमाशा हमारा प्राण है |
- चेतना - 1082
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पृथ्वी ने कहा - मैं सब कुछ सहन करूँगी तुम मुझे आकर्षण दो | जल ने कहा - मुझे जलती पृथ्वी के प्राणियों को शीतल करने दो अन्यथा मैं जला जा रहा हूँ | वायु कह उठी - मेरा दम घुटता है , मुझे प्राण संचार करने दो | अग्नि ने कहा - मैं राख हो रही हूँ , मुझे प्रकाश दो | आकाश ने कहा - मैं शून्य हृदय कब तक रखूँ ? मुझे संसार का दुःख दर्द ग्रहण करने दो | सृष्टिकर्त्ता उनकी बातों पर हँस रहा था |
- चेतना - 1098
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प्राणी शान्त क्यों नहीं ? शान्त कैसे हो , धुकधुकी लगी है प्राणों में | ये प्राण विमोहित हो रहे हैं सृष्टि के कार्यों से | शान्ति तो विचारों में है , यदि विचार का विचार करे | - ज्ञान की चेतावनी - 1100
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इसे ( प्राणी को ) अपनी इज्जत का भय है | यह रहेगी या जायेगी | रहे या जाये क्यों घबड़ाता है ? प्राण भी न रहेंगे , फिर इज्जत के लिए क्यों परेशान ?
- ज्ञान की चेतावनी - 1102
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ज्ञान का भान नहीं होता | अभिमान नहीं होता | ज्ञान प्राण है और भक्ति रक्त है भक्त की |
- चेतना - 1129
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आज वाणी का बान है | कल तेरा समूचा जहान है | वाणी बान नहीं , वाणी तेरा प्राण जिसके अभाव में शरीर लोहार की धोंकनी है | - भक्ति - 1131
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तुम बसे हो तभी तो जीवित हूँ , नहीं तो प्राण पखेरू न जाने कब उड़ जाते ?
- भक्ति - 1158
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प्राण पखेरू उड़े , कुहराम मचा | लोग समझे यह रोना ममता है | ममता रोती थी नर ने समता न अपनायी |
- चेतना - 1163
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क्षुद्र प्राण किस पर अभिमान ? एक का भी ऋण चुका न सका | दिल पर भार लिए घूम रहा है |
- भक्ति की चेतावनी - 1182
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जान नहीं , पहचान नहीं , फिर जानकारी कैसी ? जानकारी कब हुई ? जब जान प्राण जान पहचान के लिए व्याकुल हो उठे |
- चेतना - 1191
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दान नादान क्या देगा ? दान , शान है प्राणी की | कुछ लिया कुछ दिया | आदान प्रदान | आनन्द आदान | प्राण प्रदान |
- भक्ति की चेतावनी - 1199
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तू कैसा पिया | जो पिलाता नहीं प्रेम रस , केवल वेदना दी वियोग की ? प्राण कैसे शांत हो ? - भक्ति - 1212
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जब प्राण सो जाते हैं तब भी महा प्राण जागृत रहता है | सृष्टि में सोना और जागना अर्थ रखते भी हैं , नहीं भी |
- चेतना - 1223
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निरुत्तर किया जा सकता है बुद्धि बल पर , प्राण व्याकुल है | क्यों ? बुद्धि शुष्क , प्राण सरस |
- चेतना - 1227
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वह स्मृति जो मृतवत थी उसमें प्राण फूँकने वाले तू कौन ? बाँसुरी थी , मैं ने तो उसे जगाया है श्वासों से | - भक्ति - 1239
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विकलता में ही यदि प्राण पखेरू उड़ गये तो शांति कहाँ ? शांति थी और शांति है | कहाँ ? प्रिय के चरणों में | - भक्ति - 1251
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लहरे स्वयं ही प्रसन्न होती , अन्य जनों के प्रोत्साहन का कारण बनतीं , किन्तु वायु में आयु बिताने वाला समझ न पाया कि ये क्यों प्रसन्न है ? वायु ने तो प्राण तो दिये , लहरों की तरह प्रसन्नता न दी |
- चेतना - 1255
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हे शंख , चक्र , गदा , पद्मधारी ! बजा शंख कि मोह निद्रा दूर हो | चला चक्र कि संशय छिन्न - भिन्न हो , उठा गदा कि विकार पलायन करे और खिला हृदय कमल कि तेरे पद - पद्मों पर प्राण न्यौछावर हो | - भक्ति - 1275
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दिल दे कर पछताया | किसी स्वार्थी से प्यार किया होगा | प्रेम , स्वार्थ परमार्थ से महान क्योकि वह महान में ही त्राण पाता है , प्राण पाता है |
- भक्ति की चेतावनी - 1308
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ज्ञान सीमित , भक्ति असीम | ज्ञान विकास है भक्ति वास है प्राण पति का |
- भक्ति की चेतावनी - 1324
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ज्ञान जानकारी करवाता , भक्ति जान , प्राण न्योछावर करती है अपने इष्ट पर |
- भक्ति की चेतावनी - 1326
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कोई आयेगा इसी आशा में भक्तों को जीवित रखा | आज आशा नहीं , प्राण व्याकुल | - भक्ति - 1327
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प्राण और रस का आदान प्रदान अद्भुत है | प्राण है रस नहीं तो निष्प्राणवत् प्राणी | रस प्रेम , रस ब्रह्म | फिर भ्रम क्यों ?
- भक्ति की चेतावनी - 1335
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वर को दान किया प्राण , अब याचना कैसी ? वर का प्रेम मिला , लीन हुआ वर में | यही तो शुभ अवसर है | - भक्ति - 1346
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यह कैसी वेदना है जो सोने नहीं देती ? यह वेद ना की वेदना है , प्राणों की वेदना है जो प्राण अर्पण कर ही समझ पायेगा | - भक्ति - 1366
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प्रेरणा कहाँ थी ? प्रेम में थी , प्राण में थी | जगी जब दर्शन हुए |
- भक्ति - 1378
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प्रेम की परिभाषा कहाँ ? दो प्राण एक महान की शक्ति से अनुप्राणित - अमर कीर्ति के साधन बने |
- भक्ति - 1394
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कण , क्षण में पूर्ण होना चाहता है | लगन हो तो वह भी क्षण आता है जब कण मगन हो जाता है | कण व्रण रहता है जब तक कि प्रण नहीं करता , प्राण प्रिय से मिलन का |
- भक्ति की चेतावनी - 1397
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विकट और निकट - विकट प्रश्न है जीवन और मरण का | निकट है प्राणाधार , कहीं भी जाये प्राणी , प्राण चाहिये , आधार चाहिये |
- भक्ति की चेतावनी - 1416
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बिन्दु प्राणदायक , प्राण मोहक - जब हृदय को स्पर्श करे | कहीं आँसू कहीं प्रवाह ( आनन्द का ) - भक्ति - 1424
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प्रिय का दुलार कैसा ? वार कैसा ? प्रिय प्रिय है , प्रिय का अप्रिय वचन भी प्रिय | वचनबद्ध नहीं , प्राण बद्ध है | - भक्ति - 1427
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रस बरस - प्राण व्याकुल , मन बेचैन , तन शिथिल , संसार विकल | क्यों ? कल काल , मन बेहाल |
- भक्ति - 1462
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मेघ शब्द न कर विरही के प्राण व्याकुल यहाँ न बरस , यों ही नयन बरस रहे हैं |
- भक्ति - 1475
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सु राही होता तो सुर होता , सुरा का बेसुरा आलाप न करता | सुराही का ठंडा जल पी - प्राण प्रिय को पुकार कर मस्त हो जा |
- भक्ति की चेतावनी - 1480
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कण-कण में प्राण | प्राण की भी शान यदि शांत हो - प्रिय मिलन का आवाहन हो |
- भक्ति की चेतावनी - 1504
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वर्ष अब बरस कि शुष्क प्राण सरस हो | बरसता आता तो ( मन ) तरसता न रहता |
- भक्ति - 1507
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प्राण प्रभु के , त्राण सर्वदा , परित्राण प्यारो का सदा ही होता आया है | भक्त विभक्त नहीं होता , सदा ही चरणों से संयुक्त |
- भक्ति - 1517
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प्राण में प्रिय की अनुभूति नहीं तो भाव में कैसे आयेगा ? ये जो आँखों में आँसू हैं , ये तो वक्ता की वाणी का प्रभाव है | भाव कुछ और ही अवस्था है , कहने की बात नहीं |
- भक्ति की चेतावनी - 1521
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तन की सुधि , मन की क्षुधा , प्राणों की आकुलता कहाँ , जब प्राण धन पाया |
- भक्ति - 1526
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कुछ मेरी भी सुनो | तेरी क्यों सुनूँ तू भ्रम है | कुछ मेरी भी सुनो | तेरी ही सुनता आया हूँ तू मेरा प्रण है , प्राण है |
- भक्ति - 1548
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प्रण - प्रणय भी देता है प्राण भी | जीवन मरण उसकी दृष्टि में विशेष अर्थ नहीं रखते , रखता है प्रण जिसके लिए वह मर मिटता है |
- भक्ति - 1587
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यह हवा मुझे प्रिय है | प्राण प्रिय इसका संचालक जो ठहरा | उसकी पुकार में हवा बेकार | अब प्राण प्रिय में जा बसे |
- भक्ति - 1595
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आनन्द उसके लिये जिसने आन पर न्योछावर किया प्राण | नदी नहीं , नद बना , और समुद्र में जा मिला , अब आनन्द ही आनन्द है |
- भक्ति - 1607
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किसी ने प्राण कहकर पुकारा , किसी ने जीवन सर्वस्व | सर्व बस में एक ही के है जो तेरे प्राणों में बसा है |
- भक्ति - 1682
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ध्यान विचलित हुआ , प्राण व्याकुल | क्यों ? ध्यान प्राण प्रिय का था |
- भक्ति - 1692
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आगामी उत्सव ( 3 महीना )
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आगामी उत्सव हिंदी तिथि के अनुसार दिये गयें है कृपया अंतिम जानकारी सबंधित सदनों से लें |(Year-2022-2023.)
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