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यह किसकी धूप ? सूर्य की ? सूर्य की नहीं , ज्ञान की | सुगन्ध सुमन की नहीं , सु मन की , मैंने तुम्हीं में अपने को खोया है | - भक्ति - 79
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आज किससे कहूँ , कि जलता हूँ या प्रकाश देता हूँ ? जानने वाला ही जानता है | - भाव - 132
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स्थूल सूर्य एक ही दीख पड़ता है किन्तु सूक्ष्म आत्म सूर्य शून्य आकाश में अनन्त है | - ज्ञान की चेतावनी - 138
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मैंने सूर्य की किरणों के रूप में तुम्हें स्पर्श किया | तुम भी भाव की भाप बन ऊपर उठो और बरसाओ प्रेम जल को प्यासी दुनिया तृप्त हो | - चेतना - 145
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खुद ही गर्म होती है और खुद ही बरसाती है कैसी पगली है | ( प्रकृति ) ।
- चेतना - 180
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धूप आई ( प्रकाश ) - धूप जली ( आनन्द ) | - ज्ञान की चेतावनी - 197
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गर्मी आई - ठंडी हवा भी आई - वर्षा बिना | जलती भूमि कब शांत , बीज कब प्रस्फूटित | - चेतना - 257
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हिमालय ने शीतलता दी ग्रीष्म में भी | है कोई हिमालय सम प्राणी जो सम विषम को सम बनाये , जलते को ठंडक पहुँचाये ? संत और शांत |
- भाव - 334
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यह सूर्य की किरणों का खेल है या पृथ्वी का उगलना है जिसने प्राणी मात्र को प्रकाश दे रखा है हृदय का , तन का |
- भाव - 359
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गर्मी में शीतलता | माया में माया पति , खोजने वाला शान्ति पाता है | - चेतावनी - 363
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सूर्य हँस रहा है तेरा तेज देख कर | चन्द्र मुस्करा रहा है तेरी शीतलता देख कर | पृथ्वी लजा रही है तेरा धैर्य देख कर | जल उछल रहा है तेरा उत्साह देख कर | अग्नि व्याकुल हो रही है तेरी ज्योति देखकर | वायु चकित हो रही है तेरी आयु देख कर | नभ ईर्ष्यालु हो रहा है तेरी विशालता देख कर | तू नर है या नारायण | नारायण का नर है या नारायण ही नर है |
- भाव - 379
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प्रकाश ले - नहीं तो जल उठेगा तन , मन , धन यह समय की आग है | - चेतावनी - 396
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उषा , सूर्य का आगमन सूचित करती है - मधुर भाव प्रेम का |
- भक्ति की चेतावनी - 513
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तप्त भावों ने उष्ण कर डाला , क्षेत्र को | शांति वाष्प बनी | आनन्द का अभाव प्रतीत हुआ | बाहर खोजने लगा |
- चेतना - 531
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सूर्य की रश्मियों ने मेरे दिल की कली खिला दी और पिला दी कुछ ऐसी भावना की सूर्य अस्त हो जायगा किन्तु मेरी भावना अमर रहेगी |
- भाव - 555
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भीतर गर्मी बाहर गर्मी फिर शांति कहाँ ? - चेतावनी - 602
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शरीर की जलन ने शीतलता को अपनाया | अभी मन की जलन का खेल देख , उष्णता शीतलता में बदले और शीतलता उष्णता में | यही मन के खेल हैं |
- ज्ञान की चेतावनी - 621
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यह उष्ण शीतल वायु क्यों ? समुद्र से प्रेरणा पाकर भी वायु उष्ण ? पहाड़ ने शीतलता दी | आश्चर्य | पहाड़ ने हिम धारण की और समुद्र ने ? कुछ भी धारण न किया | - ज्ञान की चेतावनी - 650
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चिनगारी में चिन्ह है प्रकाश का | गारी ना-समझो का काम |
- ज्ञान की चेतावनी - 678
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फूल ऐंठ रहा था रूप पर , सुगन्ध पर | मूल ने कहा - अरे पागल ! वायु ने सुगन्ध फैलाई , सूर्य ने रूप दिया | मैं छिप कर तुझे खिला रही हूँ | अभिमान कैसा ?
- भक्ति की चेतावनी - 687
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सु आर्य ही सूर्य के समान चमका | सूरज तो सु रज बनकर मन को प्रफुल्लित करता है |
- ज्ञान की चेतावनी - 688
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गैर में रमी तो गर्मी , सर लगा प्रेम का तो सर्दी , न तरसा तो बरसा , सिर दे तो शरद , है नहीं अन्त तो हेमन्त | बस अन्त माने तो बसन्त |
- भक्ति की चेतावनी - 736
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प्रकाश फैलाने दे अंधेरा दूर हो | दिल का प्रकाश - प्रेम , बुद्धि का प्रकाश - विद्या | अहंकार को प्रकाश तब मिले , जब स्वयं कृपा करे |
- चेतना - 739
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मध्यान्ह सूर्य को आँखों से देखना सरल नहीं | जिनका हृदय कमल की तरह है खिल उठते हैं , देखना कैसा ?
- चेतना - 747
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सूर्य की किरणें अंधकार से बातें करने लगीं | अंधकार कहने लगा - मैं पुरुष सदा तुमसे हारा , प्यार में , रण में , क्योंकि प्यार का रण पराजित करता है पुरुष को |
- चेतना - 780
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प्यार में भी गर्मी है और क्रोध में भी | इस गर्मी में गैर कौन है ? रमी किस में है ? गैर है क्रोध और रमी है प्यार में | प्यार तो इसका रूप है |
- भक्ति की चेतावनी - 866
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शीत हुआ मीत , अब क्यों काँपता है ? गर्मी ने नर्मी भुला दी , अब क्यों पसीने पसीने हुआ जाता है ? वर्षा भी तुझे शांत न कर सकी तो क्यों जग में आया ? यहाँ तो कुछ ऐसा ही है | - ज्ञान की चेतावनी - 888
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पतझड़ में बसन्त देखा और बसन्त में सावन की रिमझिम किन्तु पूर्व इसके झुलसाने वाली गर्मी | प्रकृति से भी शिक्षा लेता तो सन्तोष होता |
- भक्ति की चेतावनी - 982
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जलते हुए दीपक को देखकर कहा - यह जलता क्यों है ? अरे ! यह जलेगा नहीं तो प्रकाश कैसे फैलायेगा |
- भक्ति की चेतावनी - 1035
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वे चिंगारियाँ जो प्रकाश देती हैं , वे चिंगारियाँ जो जलाती है - एक ही का खेल है | चाहे जलो चाहे प्रकाश लो | चाहे वासना कहो चाहे प्रेम |
- भक्ति की चेतावनी - 1098
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शून्य में प्रकाश ? आकाश भी तो शून्य ही है , प्रकाश देखता है कि नहीं ?
- चेतना - 1169
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प्राणी उष्ण हुआ , फट पड़ा , शीतल हुआ जम गया , इहलोक , परलोक में | फिर साधना ? यह वाद विवाद है |
- चेतना - 1197
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तप्त वायु ने बादलों की सृष्टि की या भास्कर की किरणों ने ? यह रहस्य है किन्तु सत्य है वियोगी का योगी होना , त्यागी का महा अनुरागी होना , कामी का व्याकुल होना , लोभी का छटपटाना |
- चेतना - 1202
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प्रकाश को अवकाश नहीं , फिर भी दुनिया का अंधेरा दूर नहीं हो पाता | प्रकाश क्या करे दुनियावालों को अवकाश नहीं कि वे प्रकाश को देखें | वे जिसे चाहते हैं , उसके वाहन को अंधेरा ही प्रिय है |
- चेतना - 1233
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सूर्य तुझे अर्ध्य समर्पण करूँ ? अर्ध्य नहीं अघ की भावना समर्पित कर | फिर प्रकाश ही प्रकाश है | - भक्ति की चेतावनी - 1280
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चाँद ने कहा - शीतलता ग्रहण कर | सूर्य ने कहा - ऊष्णता | संध्या ने कहा - मैं मिलन की उपासिका हूँ | मन मिलन का इच्छुक है | ऊष्णता , शीतलता कब बाधक हुई ?
- भक्ति - 1322
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कुछ मुझे भी प्रकाश दे कि आँखें खुलें | मूल की भूल है , इसीलिये शूल है , त्रिशूल है |
- भक्ति - 1362
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धूम्र ने उम्र भर अंधकार ही फैलाया | हे जाज्वल्यमान प्रकाश अब तो दर्शन दो | आँखों की अवस्था बुरी , दर्शन प्रकाश देगा | - भक्ति - 1380
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नाम का प्रकाश जन्म - जन्मान्तर का अंधकार मिटाता , सूर्य तो आधा ही है इसे कल का पता नहीं | - भक्ति - 1409
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प्रकाश की किरण शरीर पर , मन पर | सौंदर्य बन गया तन का , मन का |
- भक्ति - 1411
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गीता पढूँ कि गीत गाऊँ ? पढ़ नहीं पड़ उन चरणों में कि शीत , ग्रीष्म का कष्ट मिटे |
- भक्ति की चेतावनी - 1457
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यह शीतलता यह ऊष्णता प्रकृति का धर्म है | तेरा धर्म तो प्रेम है | जहाँ शीतलता तेरे नाम में और उष्णता तेरे वियोग में |
- भक्ति - 1534
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ये रश्मियाँ रसमय हैं जहाँ प्रकाश है , विकास है , सन्यास है , विनाश नहीं - आत्म ज्योति का प्रेम प्रकाश है क्योंकि अमिट विश्वास है |
- भक्ति - 1577
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स्नेह में यदि जलन न हो तो प्रकाश कैसे देगा ?
- भक्ति - 1602
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आगामी उत्सव ( 3 महीना )
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आगामी उत्सव हिंदी तिथि के अनुसार दिये गयें है कृपया अंतिम जानकारी सबंधित सदनों से लें |(Year-2022-2023.)
(Email :- info@bhavnirjharini.com)
भाव निर्झरिणी (Help File-Click Download PDF)
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